क्रांति १८५७
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झांसी की रानी का ध्वज

स्वाधीन भारत की प्रथम क्रांति की 150वीं वर्षगांठ पर शहीदों को नमन
वर्तमान भारत का ध्वज
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क्रांति १८५७
 

प्रस्तावना

  रुपरेखा
  1857 से पहले का इतिहास
  मुख्य कारण
  शुरुआत
  क्रान्ति का फैलाव
  कुछ महत्तवपूर्ण तथ्य
  ब्रिटिश आफ़िसर्स
  अंग्रेजो के अत्याचार
  प्रमुख तारीखें
  असफलता के कारण
  परिणाम
  कविता, नारे, दोहे
  संदर्भ

विश्लेषण व अनुसंधान

  फ़ूट डालों और राज करो
  साम,दाम, दण्ड भेद की नीति
  ब्रिटिश समर्थक भारतीय
  षडयंत्र, रणनीतिया व योजनाए
  इतिहासकारो व विद्वानों की राय में क्रांति 1857
  1857 से संबंधित साहित्य, उपन्यास नाटक इत्यादि
  अंग्रेजों के बनाए गए अनुपयोगी कानून
  अंग्रेजों द्वारा लूट कर ले जायी गयी वस्तुए

1857 के बाद

  1857-1947 के संघर्ष की गाथा
  1857-1947 तक के क्रांतिकारी
  आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे
  1947-2007 में ब्रिटेन के साथ संबंध

वर्तमान परिपेक्ष्य

  भारत व ब्रिटेन के संबंध
  वर्तमान में ब्रिटेन के गुलाम देश
  कॉमन वेल्थ का वर्तमान में औचित्य
  2007-2057 की चुनौतियाँ
  क्रान्ति व वर्तमान भारत

वृहत्तर भारत का नक्शा

 
 
चित्र प्रर्दशनी
 
 

क्रांतिकारियों की सूची

  नाना साहब पेशवा
  तात्या टोपे
  बाबु कुंवर सिंह
  बहादुर शाह जफ़र
  मंगल पाण्डेय
  मौंलवी अहमद शाह
  अजीमुल्ला खाँ
  फ़कीरचंद जैन
  लाला हुकुमचंद जैन
  अमरचंद बांठिया
 

झवेर भाई पटेल

 

जोधा माणेक

 

बापू माणेक

 

भोजा माणेक

 

रेवा माणेक

 

रणमल माणेक

 

दीपा माणेक

 

सैयद अली

 

ठाकुर सूरजमल

 

गरबड़दास

 

मगनदास वाणिया

 

जेठा माधव

 

बापू गायकवाड़

 

निहालचंद जवेरी

 

तोरदान खान

 

उदमीराम

 

ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव

 

तिलका माँझी

 

देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह

 

नरपति सिंह

 

वीर नारायण सिंह

 

नाहर सिंह

 

सआदत खाँ

 

सुरेन्द्र साय

 

जगत सेठ राम जी दास गुड वाला

 

ठाकुर रणमतसिंह

 

रंगो बापू जी

 

भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर

 

वासुदेव बलवंत फड़कें

 

मौलवी अहमदुल्ला

 

लाल जयदयाल

 

ठाकुर कुशाल सिंह

 

लाला मटोलचन्द

 

रिचर्ड विलियम्स

 

पीर अली

 

वलीदाद खाँ

 

वारिस अली

 

अमर सिंह

 

बंसुरिया बाबा

 

गौड़ राजा शंकर शाह

 

जौधारा सिंह

 

राणा बेनी माधोसिंह

 

राजस्थान के क्रांतिकारी

 

वृन्दावन तिवारी

 

महाराणा बख्तावर सिंह

 

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

क्रांतिकारी महिलाए

  1857 की कुछ भूली बिसरी क्रांतिकारी वीरांगनाएँ
  रानी लक्ष्मी बाई
 

बेगम ह्जरत महल

 

रानी द्रोपदी बाई

 

रानी ईश्‍वरी कुमारी

 

चौहान रानी

 

अवंतिका बाई लोधो

 

महारानी तपस्विनी

 

ऊदा देवी

 

बालिका मैना

 

वीरांगना झलकारी देवी

 

तोपख़ाने की कमांडर जूही

 

पराक्रमी मुन्दर

 

रानी हिंडोरिया

 

रानी तेजबाई

 

जैतपुर की रानी

 

नर्तकी अजीजन

 

ईश्वरी पाण्डेय

 
 

गोवा के क्रांतिकारी

बापू बोटो
बाला देसाई
लक्ष्मण वेलिंगकर
मनोहर पेडनेकर
बाला मापारी
मार दूलो
रघुनाथ शिरोदकर
रामचंद्र नेवगुई
रोहिदास मापारी
रावजी राने
विनायक साप्ते
यशवंत राव राने
यशवंत अग्रवाडेकर
सुरेश केरकर
अर्जुन पिरानकर
भीकाजी सहकारी
केदार अन्वेकर
परशुराम आचार्य
बबली गावंस
बबला पारब
दरोगासिंह
फताबा नाइक
पुरूषोत्तम केरकर
पांडुरंग केंकरे, लादू सावंत
प्रभाकर वेरेनकर
तुलसीदास कामल
प्रभाकर वारनेकर

बापू बोटो

बापू बोटो गोवा के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम श्री श्रीकृष्ण बोटो था।

23 मई, 1957 को गोवा की पुलिस ने अपनी हिरासत में रखे एक क्रांतिकारी बापू बोटो को गोली से उड़ा दिया। बापू बोटो को इसलिए गिरफ्तार किया गया था, क्योकि कई तोड़-फोड़ के कार्यों में वह शामिल थे। पुलिस ने उन पर मुकदमा चलाने के बजाय उन्हें समाप्त कर देना ही उचित समझा।


बाला देसाई

बाला देसाई का जन्म 8 फरवरी, 1928 को गोवा के दरगालिम स्थान पर हुआ था। उनके पिता श्री गोपाल देसाई एक कृषक थे। बाला देसाई गोमांतक दल के सदस्य थे।

गोवा के तरुण क्रांतिकारी बाला देसाई का हौसला इतना बढ़ गया था कि वह पुर्तगाल की फौज एवं पुलिस के साथ जब-तब युद्ध करके उन्हें पीछे हटा दिया करता था। इसी प्रकार का एक आक्रमण उन्होंने गोवा के पुलिस दल पर 2 मई, 1956 को कर दिया। दोनों पक्षों से गोलियों का आदान-प्रदान होने लगा। पुलिस दल की संख्या अधिक थी और वे अच्छी स्थित लेकर मोरचा लिये हुए थे। परिणाम यह हुआ कि बाला देसाई का शरीर गोलियों से छलनी हो गया। उन्होंने युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त की।

लक्ष्मण वेलिंगकर

पुर्तगाल की पुलिस ने गोवा के महान् क्रांतिकारी लक्ष्मण वेलिंगकर को गिरफ्ताकर करके यह जानने का प्रयत्न किया कि उसके साथी कौन-कौन है? लक्ष्मण वेलिंगकर ने अपने किसी भी क्रांतिकारी साथी का नाम बताने से इन्कार कर दिया। उन्हें मारा गया, जगह-जगह उनके शरीर को जलाया गया और चाकू से उसकी चमड़ी काटकर उसमें नमक-मिर्च भरा गया; लेकिन फिर भी अपने किसी साथी को फँसाने के लिए उसका मुँह नहीं खोला। इन यातनाओं का परिणाम यह हुआ कि जेल में उनकी मृत्यु हो गई।

लक्ष्मण वेलिंगकर का जन्म सन् 1925 में गोवा के वेलिंग स्थान पर हुआ था। थोड़ी-बहुत शिक्षा प्राप्त करके उन्होंने दवाई विक्रेता की दुकान पर नौकरी कर ली। वह गोवा राष्ट्रीय क्रांग्रेस के सदस्य थे। अपने प्रदेश को मुक्त कराके शेष भारत के साथ मिलाने के लिए उन्होंने गोपनीय प्रयास भी किए और उसी प्रयास में वह शहीद हुए।

मनोहर पेडनेकर

मनोहर पेडनेकर का जन्म सन् 1936 में गोवा के परनेम गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री श्रीकृष्ण पेडनेकर था। वह गोमांतक दल के सक्रिय सदस्य थे।

मनोहर पेडनेकर का हौसला इतना बढ़ा हुआ था कि वह पुर्तगाली पुलिस एवं फौज से जब-तब भिड़ जाया करते थे और भारी हानि के साथ उन्हें पीछे हटाते थे। सन् 1961 में केरी नामक एस स्थान पर मिलिट्री की एक कंपनी के साथ उनकी मुठभेड़ हो गई। स्वयं के ही हाथ में हथगोला फट जाने के कारण युद्धभूमि में उन्होंने वीरगति प्राप्त कर ली।

बाला मापारी

बाबा मापारी का जन्म 8 जनवरी, 1929 को गोवा के अस्सोनोरा गाँव में हुआ था। उनके पिता श्रीराम मापारी कृषक थे।

गोवा को पुर्तगाल की दासता से मुक्त कराने के लिए गोवा के क्रांतिकारियों का जो गुप्त संगठन बना था, उसका नाम गोमांतक दल था। बाला मापारी इस गोमांतक दल के सक्रिय सदस्य थे। गोमांतक दल के क्रांतिकारियों ने अस्सोनोरा पुलिस चौकी पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया और पुलिस के बहुत बड़े शस्त्रागार पर भी अपना अधिकार जमा लिया। पुर्तगाल की पुलिस ने इस कांड को अपना अपमान समझा और एक बहुत बड़े पुलिस दल ने क्रांतिकारियों पर हमला कर दिया। बाला मापारी गिरफ्तार कर लिए गए। उन्होंने उनके अन्य क्रांतिकारी साथियों के पते-ठिकाने पूछे गए; पर उन्होंने कुछ भी बताने से इन्कार कर दिया। उन्हें बहुत यातनाएँ दी गईं, पर उनकी जबान नहीं खुली। यातनाओं के परिणामस्वरूप 18 फरवरी, 1955 को बाला मोपारी की मृत्यु हो गई।

मार दूलो

भीकाजी सहकारी के घनिष्ठ मित्र थे मार दूलो। जब उन्होंने सुना की पुर्तगाल की पुलिस ने उनके मित्र औैर उनके साथियों को मार डाला तो उनका मन बदला लेने के लिए मचल उठे। उन्होंने धार बंदोरा के जंगल में पुलिस के दल पर आक्रमण करने की योजना बना डाली। भयंकर युद्ध हुआ और दोनों पक्ष के लोग मारे गए। पुलिस की हानि अधिक हुई।

पुर्तगाल की पुलिस ने अपनी हानि का बदला लेने के लिए 4 जून, 1956 को मार दूलो को घेर लिया और वह उसे मारने में सफल हो गई। इस युद्ध में भी पुलिस को बहुत जानहानि उठानी पड़ी। मार दूलो गोमांतक दल के क्रांतिकारी थे। पुर्तगाल की पुलिस उनका नाम सुनकर काँप उठती थी।

रघुनाथ शिरोदकर

रघुनाथ शिरोदकर का जन्म गोवा के बरदेल जिले के पोमबुरपा स्थान पर 18 अगस्त, 1930 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री पुंडलिक शिरोदकर था।

रघुनाथ शिरोदकर गोमांतक दल के सक्रिय क्रांतिकारी थे। पुर्तगाल की फौज को उड़ाने के लिए सड़क किनारे सुरंग बिछाने में सुरंग फट गई और रघुनाथ एवं उनके सभी साथी 13 नवंबर, 1956 को शहीद हो गए।

रामचंद्र नेवगुई

रामचंद्र नेवगुई का जन्म गोवा के बीचोलिम ग्राम में सन् 1910 में हुआ था। उनके पिता श्री हरि नेवगुई एक व्यापारी थे। रामचंद्र नेवगुई गोवा की राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और गोवा मुक्ति के लिए सक्रिय रहते थे।

10 मार्च, 1957 को पुर्तगाल की पुलिस ने अस्सोनोर पुल के पार जाती हुई एक कार पर गोलियाँ चला दी। पुलिस को समाचार मिला था कि उस कार में कुछ क्रांतिकारी यात्रा कर रहे हैं और वे कहीं आक्रमण करने वाले हैं। पुलिस की गोली से उस कार में सवार रामचंद्र नेवगुई की मृत्यु हो गई।

रोहिदास मापारी

रोहिदास मापारी का जन्म अस्सोनोरा ग्राम में 12 दिसंबर, 1924 को हुआ था। उनके पिता श्री पांडुरंग मापारी एक कृषक थे।

रोहिदास मापारी गोवा के उन भयंकर क्रांतिकारियों में से एक थे, जिनके नाम से पुर्तगाल की पुलिस काँपती थी। वह गोमांतक दल के अत्यंत उग्र क्रांतिकारी थे। पुलिस के साथ युद्ध करने और उसे नीचा दिखाने में रोहिदास मापारी को बहुत आनंद आता था। एक बार उन्होंने अस्सोनोरा की बहुत बड़ी पुलिस चौकी पर हमला करके सारा गोला-बारूद और हथियार लूट लिये तथा पुलिस के कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया। बाद में पुलिस ने घात लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त कर ली। उन्हें अठारह महिने तक हिरासत में रखा गया। उन्हेंे प्रतिदिन ही यातनाएँ दी जाती थीं। इन्हीं यातनाओं के परिणामस्वरूप 28 सितंबर, 1956 को उनकी मृत्यु हो गई।

रावजी राने

रावजी राने का जन्म गोवा के जुवेम ग्राम में हुआ था।

दादा राने के एक सहयोगी रावजी राने थे। जिस फौज का निर्माण दादा राने ने किया था, उनके जनरल थे रावजी राने। रावजी राने ने कई बार पुर्तगाली फौज से युद्ध करके उसे भारी नुकसान पहुँचाया।

एक बार रावजी राने जब अकेले नगर की ओर जा रहे थे तो पुर्तगाली पुलिस के एक अफसर ने गोली चलाकर उनको मार डाला।

इस हत्या का बदला चुकाने के लिए रावजी राने के मित्रों और क्रांतिकारी सैनिकों ने उस पुर्तगाली अफसर की हत्या कर दी और उसका घर जलाकर राख कर दिया।

विनायक साप्ते

विनायक साप्ते सन् 1939 में गोवा के कोरलिम गाँव में पैदा हुए थे। उसके पिता श्री धर्म साप्ते ताम्रकार थे।

पुर्तगाली शासन की दासता से गोवा को मुक्त कारने के लिए जो खुला राष्ट्रीय आंदोलन चला था, उसमें विनायक साप्ते ने भाग लिया और वह दो बार जेल भी गए। लेकिन उनको शीघ्र ही उस आंदोलन की निस्सारता समझ में आ गई और वह गोवा के क्रांतिकारियों की संस्था गोमांतक दल के सदस्य बन गए।

विनायक साप्ते के दल ने विस्फोटक सुरंगों के साथ सिरिगाओ माइंस का विध्वंस करने का संकल्प किया। वे लोग आवश्यक सामग्री के साथ घटनास्थल पर पहुँच गए। उनका अभियान सफल रहा और वहाँ भारी विनाश हुआ। इस अभियान को संपन्न करके जब उनका दल लौट रहा था तो पुर्तगाल की पुलिस ने उनका पीछा किया। अपने सभी साथियों को उन्होंने सुरक्षापूर्वक निकाल दिया, पर वह स्वयं पुलिस की गोली का शिकार होकर 19 फरवरी, 1958 को शहीद हो गए।

यशवंत राव राने

यशवंत राव राने ने गोवा को पुर्तगाल के शासन से मुक्त करने के लिए एक सेना का निर्माण किया पुर्तगाल सेना के साथ कई बार युद्ध किए। उनकी संगठन शक्ति बहुत अच्छी थी। उनके कथन का लोगों पर शीघ्र प्रभाव पड़ता था। उन्होंने अपनी वाणी और व्यक्तित्व के प्रभाव से पुर्तगाली सेना में विद्रोह भी करा दिया।

आखिर यशवंत राव राने सन् 1912 में पकडे गए और आजीवन कारावास की दंड देकर अफ्रीका भेजा दिए गए। अफ्रीका की जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।

यशवंत अग्रवाडेकर

यशवंत का जन्म 15 जनवरी, 1918 को गोवा के सियोलिम ग्राम में हुआ था।

पुर्तगाली पुलिस की दृष्टि में यशवंत अग्रवाडेकर इतने खतरनाक क्रांतिकारी थे कि उनकी गिरफ्तारी के लिए पुर्तगाल सरकार ने पाँच हजार रूपए का पुरस्कार घोषित किया था।

उन्होंने कई मुठभेड़ों में पुलिस को भारी जनहानि पहुँचाई थी। वह गोमांतक दल के बहुत उग्र क्रांतिकारी थे।

आखिर 17 दिसंबर, 1958 को अनजुना जंगल में यशवंत की मुठभेड़ एक बहुत बड़े पुलिस दल से हो गई और उस युद्ध में उन्होंने वीरगति प्राप्त कर ली।

सुरेश केरकर

सुरेश केरकर का जन्म गोवा के केरी ग्राम में सन् 1929 में हुआ था। उनके पिता नाम श्री अमृत भीमा था।

सुरेश केरकर क्रांतिकारियों की गुप्त संत्था गोमांतक दल के सक्रिय सदस्य तो थे ही, साथ ही वह एक अच्छे संगठक और प्रभावशाली वक्ता भी थे। वह अपनी बात कुछ इस ढंग से रखता थे कि सामने वाले को उसे स्वीकार करना ही पड़ता था। वह लोगों को देशभक्ति की गहरी प्रेरणा देते रहते थे।

सुरेश केरकर और उनके साथियों ने यह योजना बना डाली कि पोंपा स्थित पुर्तगाली फौज कोपानी देने वाली पाइप लाइन को डायनामाइट से उड़ा दिया जाए। 17 फरवरी, 1957 को इस कार्य के लिए शीघ्र ही वह अपने चुने हुए साथियों को लेकर चल पडे। पुर्तगाली रक्षक दल द्वारा वह देख लिए गए। रक्षक दल द्वारा की गई गोलीबारी के परिणामस्वरूप अपने कुछ साथियों के साथ वह मारे गए।

अर्जुन पिरानकर

अर्जुन पिरानकर का जन्म सन् 1917 में गोवा के 'खरपाल' गाँव में कुआ था। उनके पिता का नाम श्री दाखू पिरानकर था। वे कृषक थे।

अर्जुन पिरानकर ने अपने कई दिनों के निरीक्षण से यह जान लिया कि पुर्तगाल का रक्षक दल एक विशेष सड़क से नियत समय पर गुजरा करता है। उसने तय कर लिया कि वह किसी दिन बम प्रहार करके पुर्तगाली रक्षक को मौत के घाट उतार देगा। वह अपनी योजना में जुट गया।

19 फरवरी, 1957 को अर्जुन पिरानकर एक बम लेकर उस सड़क पर पहुँच गए। वह उस बम को सड़क के किनारे पत्थरों के नीचे दबा रहा था कि अचानक बम फट गया और घटनास्थल पर ही उनकी मृत्यु हो गई।

भीकाजी सहकारी

भीकाजी सहकारी गोवा के उग्र क्रांतिकारियों में से एक थे। गोवा को पुर्तगाल के चुंगल से मुक्त करने के लिए वह अपने दल का नेतृत्व किया करते थे और पुलिस पर छापे मारकर उसे भारी हानि पहुँचाया करते थे। एक बार पुलिस के एक मुखबिर ने बताया कि भीकाजी सहकारी कलेम जंगल में अपने साथियों के साथ छिपे हुए है। 29 मई, 1956 को पुलिस के एक बहुत बडे दल ने कलेम जंगल में भीकाजी सहकारी को घेर लिया और उन्हे समर्पण के लिए ललकारा। भीकाजी सहकारी ने समर्पण के स्थान पर युद्ध किया और वीरगति प्राप्त की। उनके कई साथी गिरफ्तार कर लिये गए। पुलिस ने उनके साथियों को वृक्षों से बाँधकर गोलियों से भून डाला।

भीकाजी सहकारी का जन्म गोवा के सिमेलन गाँव में 25 नवंबर, 1937 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रामकृष्ण सहकारी था।

इस अभियान में भीकाजी के साथी के.शिरोदकर भी शहीद हुए। शहीद होनेवाले अन्य साथी थे-के. गोनसेस और दुलबा पवार।

केदार अन्वेकर

केदार अन्वेकर का जन्म सन् 1920 में गोवा के मरसीज स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम श्री विनायक अन्वेकर था।

गोवा के क्रांतिकारी संगठन गोमांतक दल का प्रभाव समस्त गोवासियाँ पर था, चाहे वे नागरिक हों या शासकीय कर्मचारी। अपनी मातृभूमि को मुक्त की तड़प सभी के दिलों में थी।

केदार अन्वेकर गोवा शासन की सेवा में एक युवा इंजीनियर थे। वह पंजिम जिले के बंबोलिन नामक स्थान पर गोवा आकाशवाणी के इंजीनयर थे। शासकीय सेवा में होते हुए भी वह गोमांतक दल के सदस्य बन चुके थे। उनकी योजना थी कि बंबोलिन के आकाशवाणी केंद्र को बम से उड़ा दिया जाए। इस कार्य के लिए उन्होने एक बम भी प्राप्त कर लिया। 5 जुलाई, 1955 को जब वह आकाशवाणी केंद्र में बम रख रहे थे तो बम उनके हाथों में ही फट गया और उनकी मृत्यु हो गई।

परशुराम आचार्य

परशुराम आचार्य गोवा के क्रांतिकारियों के संगठन गोमांतक दल के सदस्य थे। इस दल की पुर्तगाल की पुलिस के साथ हमेशा ही झड़पें हुआ करती थीं। पुलिस ने 19 सितंबर, 1956 को परशुराम को गिरफ्तार कर लिया और बेरहमी के साथ डंडों तथा लोहे के सरियों से उनकी पिटाई की। उन्हें इतना अधिक मारा कि उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई।

परशुराम आचार्य का जन्म सन् 1918 में गोवा के परतागले ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री श्रीनिवास आचार्य था। इसी कांड में केशव भट की भी पुलिस की यातनाओं से मृत्यु हुई। केशव भट के पिता का नाम श्री सदाशिव भट था।

परशुराम आचार्य और केशव भट के साथ उनके साथी केशव टेंगशे की भी पुर्तगाली पुलिस ने उसी प्रकार यातनाएँ दी थीं, जिनके परिणामस्वरूप उनकी भी मृत्यु हो गई। केशव टेंगशे का जन्म गोवा के पेंगुइनिम में सन् 1926 में हुआ था। उनके पिता श्री भट टेंगशे एक मंदिर के पुजारी थे।

बबली गावंस

बबली का जन्म 19 जुलाई, 1919 को गोवा के खोलबेम नामक गाँव में हुआ था। बबली गांवस गोवा की क्रांतिकारी संस्था गोमांतक दल के सक्रिय सदस्य थे। उनका विश्वास था कि गोवा से पुर्तगाली शासन का अंत करने के लिए सशस्त्र उपायों के बिना काम नहीं चलेगा।

एक बार बबली अपनी बैलगाड़ी हाँककर डोडामेअर से बीचोलिअ जा रहे थे। उनके पास एक बम था। गाड़ी के दचकों से बम का विस्फोट हो गया और घटनास्थल पर ही उनका प्राणांत हो गया। यह घटना सितंबर 1957 की है।

बबला पारब

बबला पारब के पिता का नाम श्री धोंधो पारब था। वह बचपन से ही साहसिक कामों मे रूचि लेते थे। जब गोवा मुक्ति आंदोलन छिड़ा तो बबला पारब उसमें कूद पडे। गिरफ्तार करके वह जेल में डाल दिए गए। पुर्तगालियों ने उन्हेंे मोम नामक स्थान पर अगस्त 1956 में गोलियों से भून डाला।

दरोगासिंह

गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने के लिए वहाँ के क्रांतिकारियों ने सशस्त्र प्रयास किए। इसी प्रकार का एक प्रयास था कैसल रॉक टनल को बम से उड़ाना। 15 अगस्त, 1955 को क्रांतिकारी अपनी पूरी तैयारी के साथ वहाँ पहुँच गए; लेकिन वे देख लिए गये। पुर्तगाली पुलिस ने उन पर गोलियाँ चलाई और पाँच क्रांतिकारी शहीद हो गए। उनके विवरण पुस्तुत हैं-
1.        शिवशंकर भंसाली : गोवा के निवासी और गोमांतक दल के सदस्य थे।
2.        दरोगासिंह : ये भी गोवा के निवासी और गोमांतक दल के सदस्य थे।
3.        मानस गुप्ता : गोवा के क्रांतिकारी थे।
4.        एस. के. मुकर्जी : गोवा के क्रांतिकारी थे।

फताबा नाइक

गोवा के मयेम ग्राम में जन्मे फताबा नाइक के पिता का नाम श्री सदा नाइक था, जो एक कृषक थे। उनके पुत्र फताबा ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया। एक ओर तो वह खुले रूप से गोवा राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और दूसरी ओर क्रांतिकारियों की संस्था गोमांतक दल से जुडे हुए थे।

जब पुर्तगाली पुलिस ने फताबा नाइक को सन् 1946 में गिरफ्तार किया तो अदालत ने उन्हेंे उन्नीस वर्ष के कारावास का दंड दे दिया।

फताबा इतना लंबा कारावास भुगतने के लिए जीवित नहीं रहे। ड्यु-फोर्ट जेल में अक्टूबर, 1956 में उनकी मृत्यु हो गई।

पुरूषोत्तम केरकर

केल बाईस वर्ष की अवस्था में पुरूषोत्तम केरकर ने दो बार जेल की सजा भुगत ली और पुलिस की गोलियाँ खाकर शहीद हो गए। वह गोवा की राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य भी थे और गोपनीय रूप से गोमांतक दल के क्रांतिकारियों के साथ भी उनका गठबंधन था तथा वह साहसिक योजनाओं में भी भाग लिया करते थे। पुर्तगाल की पुलिस उनसे भयभीत रहा करती थी।

एक बार पुरूषोत्तम जब गोवा की सीमा पार करके भारत की सीमा में प्रवेश कर रहे थे तो पुलिस ने उनको गोली मार दी। पुरूषोत्तम केरकर का जन्म गोवा के पणजी स्थान पर सन् 1934 में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री बाबू केरकर था।

पांडुरंग केंकरे, लादू सावंत

पांडुरंग केंकरे और लादू सावंत भीकाजी सहकारी के मित्र थे, जिन्हें पुर्तगाल की पुलिस ने 29 मई, 1956 को कलेम जंगल में घेरकर मार डाला था। अपने मित्र की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडुरंग केंकरे उस आक्रमण में सम्मिलित हुआ, जो मार दूलो ने पुर्तगाल की पुलिस पर किया। इस युद्ध में पांडुरंग कैंकरे औल लादू सावंत लड़ते-लड़ते शहीद हो गया।

पांडुरंग केकंरे का जन्म सन् 1931 में गोवा के कंकोलिम गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सखाराम केंकरे था। कम पढ़ा-लिखा होने के कारण पांडुरंग ने साइकिल की दुकान डाल ली थी। वह साइकिलें सुधारते थे और किराए पर देते थे। वह गोमांतक दल के क्रांतिकारी थे। लादू सावंत का जन्म सन् 1927 में गोवा के कलेम स्थान में हुआ था।

प्रभाकर वेरेनकर

गोवा के क्रांतिकारी संगठन गोमांतक दल के सदस्यो में भी जो लोग अत्यधिक उग्रवादी थे, उनमें प्रभाकर वेरेनकर की गणना होती थी। उन्होंने अपना पृथक् से एक छोटा-सा दल बना लिया था, जो भूमिगत रहकर तोड़-फोड़ का कार्य करता रहता था। इसी दल का नेतृत्व प्रभाकर वेरेनकर कर रहे थे।

एक दिन सन् 1955 में पुर्तगाल की पुलिस ने घेरा डालकर प्रभाकर को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की हिरासत से भागने के प्रयास में प्रभाकर वेरेनकर को गोली मार दी गई। प्रभाकर वेरेनकर का जन्म गोवा के सवोईरेम स्थान पर सन् 25 फरवरी, 1916 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री दूलो वेरेनकर था।

तुलसीदास कामल

पुर्तगाली शासन को उखाड़कर गोवा को मुक्त करने के लिए गोवा के निवासी निरंतर प्रयत्न कर रहे थे। इस कार्य के लिए एक तो गोवा राष्ट्रीय कांग्रेस नाम से उनके पास एक खुला मंच था और दूसरा उनके पास गोमांतक दल नाम का एक क्रांतिकारी संगठन भी था। तुलसीदास कामत इसी गोमांतक दल के सदस्य थे। उनके पिता श्री काशीनाथ कामत पोस्टमैन थे। तुलसीदास कामत का जन्म गोवा के वोलवोई स्थान पर सन् 1934 में हुआ था।

गोमांतक दल की एक टुकड़ी ने जुलाई 1955 में सुरले माईस पर आक्रमण कर दिया। इस टुकड़ी का नेतृत्व तुलसीदास कामत ही कर रहे थे। इस प्रयास में वह गिरफ्तार कर लिए गए।

जेल में पुर्तगाल की पुलिस ने तुलसीदास को यातनाएँ देकर यह जानना चाहा कि गोमांतक दल के नेता मोहन रानाडे कहाँ है। तुलसीदास कामत ने अपने नेता के विषय में कुछ भी बताने से इन्कार कर दिया। यातनाओं के परिणामस्वरूप जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।

प्रभाकर वारनेकर

प्रभाकर वारनेकर गोवा के निवासी थे और गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त करने के लिए उन्होंने गोमांतक दल से अपना संबंध स्थापित कर लिया।

श्री प्रभाकर वारनेकर ने एक पुलिस चौकी पर आक्रमण करके उसके हथियार लूटना का प्रयत्न किया और उसी प्रयत्न में वे गिरफ्तार कर लिये गए। पुर्तगाल की पुलिस श्री प्रभाकर वारनेकर को भयंकर क्रांतिकारी मानती थी। गिरफ्तार करके उन्हें जेल में ले जाया गया और वहाँ उनको गोली मार दीं गई।

क्रांति १८५७

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ज्ञान गंगा ऑनलाइन
उदयपुर मित्र मण्डल, डा. सुरेन्द्र सिंह पोखरणा, बी-71 पृथ्वी टावर, जोधपुर चार रास्ता, अहमदाबाद-380015,
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